गुरु ग्रह का जीवन पर प्रभाव कर सकता है कायाकल्प, बृहस्पतिवार करें ये काम

सौरमंडल अनेक प्रकाश पुंजों से सुशोभित है जिसमें ग्रह, नक्षत्र, तारे अनादिकाल से पृथ्वी वासियों में प्राणों का संचार कर रहे हैं। पृथ्वी सौरमंडल का एक ग्रह है मगर आकाशीय मंडल में विचरित सूर्य, चंद्र इत्यादि ग्रहों से 1,86,000 प्रति सैकेंड की गति से आने वाला प्रकाश हमें प्रकाशित एवं प्रभावित करता है। इनका प्रभाव पृथ्वी वासियों पर इन ग्रहों की अपनी निश्चित परिधि एवं गति का अनुसरण-विचरण करते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। इनका प्रभाव इनकी गति, दिशा एक ग्रह से दूसरे ग्रह से अथवा पृथ्वी से दूरी पर भी निर्भर करता है। सूर्य, मंगल, चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, हर्षल नैप्चयून, राहु एवं केतु ये सभी ग्रह एक निश्चित अवधि में क्रमश: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन में से गुजरते हुए जब-जब जिस राशि में जितने समय की अपनी-अपनी अवधि के लिए घूमते हुए आते हैं उसमें अपना अलग प्रभाव सभी पृथ्वीवासियों पर उनके जन्म काल तथा जन्म लग्र कुंडली के अनुसार अथवा गोचर कुंडली के अनुसार डालते हैं। चंद्रमा चूंकि पृथ्वी का सबसे निकटतम एवं द्रुतगामी ग्रह है इसलिए इसका प्रभाव शीघ्र-अतिशीघ्र एवं विशेष है। सूर्य ग्रह सभी ग्रहों का ग्रह शिरोमणि एवं व्यास में भी सबसे अधिक होते हुए वह अन्य ग्रहों की तरह राशि बदलता है मगर एक मास के बाद अर्थात एक अंश प्रतिदिन इसके अतिरिक्त प्रत्येक ग्रह का अपनी उच्च, नीच, राशि-भ्रमण दूसरे ग्रहों से मैत्री संबंध एवं दृष्टि से भी प्राणी जगत पर भिन्न प्रभाव होता है। ज्योतिष विज्ञान में मात्र किसी के जन्म लग्र एवं जन्म लग्न की ग्रह स्थिति देखकर भविष्यफल कह देना कदापि न्यायोचित नहीं। कई प्रकार की ग्रह अवस्थाएं स्थितियां, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा एवं जन्म कुंडली को प्रमाणित किए बिना भविष्य कहना अंधेरे में तीर मारना है। इसी ग्रह शृंखला में बृहस्पति ग्रह गुरु ग्रह पृथ्वी से 48 करोड़ मील की दूरी बनाए, 4332 दिनों (12 वर्ष) अर्थात बारह राशियों का भ्रमण, काल एवं इनकी महादशा 16 वर्ष की होती है। देव मंत्री ग्रह गौरवर्ण लिए पीत वस्त्र पहने, सात्विक गुणी पूर्वोत्तर दिशा स्वामी, आकाश तत्वी गुणयुक्त है। धनु एवं मीन राशि के स्वामी, धन के 10 अंश एवं मीन के अंतिम 20 अंश पर इनका प्रभुत्व होता है। किसी भी जातक की कुंडली के दूसरे, पांचवें, नौवें अर्थात धन, संतान, भाग्य भाव के यह स्वामी हैं। कफ, चर्बी एवं धातु की वृद्धि करते हैं। शरीर में आने वाली सूजन, गुल्म आदि रोग इनकी जन्म कुंडली में स्थिति पर निर्भर होते हैं। सूर्य मंगल, चंद्रमा इनके मित्र हैं। बुध, शुक्र से शत्रु, भाव एवं शनि से सम भाव रखते हैं। लग्न में बैठा गुरु बलि, चंद्रमा से चेष्टा बल, पारलौकिक एवं अध्यात्म सुखों एवं बुद्धि का विचार इनकी अवस्थिति पर ही निर्भर है। हेमंत ऋतु के स्वामी दिन में सबल होते हैं, जिस भाव में बैठ जाएं उस भाव का सुख जातक को कम होता है मगर इनकी दृष्टि पांचवीं, सातवीं और नवमी वहां के भावों की राशि राशिपति अथवा ग्रहों के अनुसार शुभ अथवा अशुभ होती है। केंद्र 1-4-7-10 में बैठे बृहस्पति महाराज जातक को बुद्धि, ज्ञान, विवेक की विशेष कृपा करते हैं। जन्म कुंडली में बारह भाव (घर) होते हैं। इनमें अलग-अलग बारह राशियां एवं उन बारह राशियों में विभिन्न राशियों में नौ ग्रह जन्म समय अपनी स्थिति के अनुसार रहते हैं। इन सभी भावों में राशि स्थिति, ग्रह स्थिति, दृष्टि को विचार कर ही मोटे रूप में कुछ फलादेश कहा जा सकता है। किसी एक ग्रह की अलग-अलग भावों में स्थिति अथवा राशि के अनुसार फल लिखना भ्रम पैदा करना होगा। बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीली खाद्य वस्तु, पुष्प, सोना, कस्तूरी, पीले फूल-फल का दान, गुरु, कुल गुरु ब्राह्मण का आशीर्वाद, सेवा सदैव शुभ फल देने वाली होती है। बृहस्पति वार का व्रत रखने, चने की दाल गाय को खिलाने, पीपल की (रविवार के अतिरिक्त) पूजा करने, पुखराज पहनने से विशेष लाभ होता है। पीले-पारदर्शक पेपर की पांच परतों को दोनों तरफ मोड़ करके पाऊच बना कर उसमें थोड़ा-सा केसर रख कर उस छोटे से कागज को लैमिनेट करवाकर जेब में रखने से भी पुखराज धारण करने समान लाभ होता है। सबसे बढ़कर गुरु, माता, पिता की सेवा एवं आशीर्वाद से गुरु ग्रह की विशेष कृपा होती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published.