शनिश्चरी अमावस्या

अमावस्या पर क्या करें और क्या नहीं, ध्यान रखनी चाहिए 6 बातें

हिन्दी पंचांग के अनुसार एक माह 15-15 दिनों के दो पक्षों में विभाजित होता है। एक होता है शुक्ल पक्ष और दूसरा होता है कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएं बढ़ती हैं यानी चंद्र बढ़ता है। कृष्ण पक्ष में चंद्र घटता है और अमावस्या पर पूरी तरह अदृश्य हो जाता है।

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चंद्रमा की सोलहवीं कला को अमा कहा गया है। स्कंदपुराण में लिखा है-

अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला।

संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी।।

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इस श्लोक का अर्थ यह है कि चंद्र अमा नाम की एक महाकला है, जिसमें चंद्र की सोलह कलाओं की शक्तियां शामिल होती हैं। इस कला का क्षय और उदय नहीं होता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए अमावस्या से जुड़ी खास बातें…

> जब सूर्य और चंद्र एक साथ होते हैं, तब अमावस्या होती है। इस दिन ये दोनों ग्रह एक साथ एक ही राशि में होते हैं। 5 जनवरी की सुबह सूर्य और चंद्र, दोनों एक साथ धनु राशि में रहेंगे।

 शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है।

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> अमावस्या पर तीर्थ स्नान, जाप, तप और व्रत करने की परंपरा है। इससे सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

> इस तिथि पर संयम से रहना चाहिए। खासतौर पर इस दिन अधार्मिक कामों से बचना चाहिए। अमावस्या की रात पूजा-पाठ, मंत्र साधना और तप किया जाता है।

> जो लोग अमावस्या पर व्रत रखना चाहते हैं, उन्हें इस दिन सिर्फ दूध का सेवन करना चाहिए। साथ ही, भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। आमतौर पर ये व्रत एक वर्ष तक किया जाता है। इससे तन, मन और धन की परेशानियां दूर हो सकती हैं।

 कूर्म पुराण के अनुसार इस दिन शिवजी की आराधना के साथ व्रत किया जाए तो व्यक्ति गंभीर बीमारियों से और दुर्भाग्य से बच सकता है।

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अमावस्या पर इस विधि से करें शनिदेव की पूजा…

शनिवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद लोहे का एक कलश लें और उसे सरसों या तिल के तेल से भर कर उसमें शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें।

उस कलश को काले कंबल से ढंक दें। इस कलश को शनिदेव का रूप मानकर वस्त्र, चंदन, चावल, फूल, धूप-दीप, यज्ञोपवित, पान, दक्षिणा आदि चढ़ाएं।

 

इसके बाद ये मंत्र बोलें-
          ऊं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवंतु पीतये।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:।।
ऊं शनिश्चराय नम:।।

शनिदेव को उड़द और तिल की खिचड़ी का भोग लगाएं। इसके बाद शनिदेव से जाने-अनजाने में किए पापों के लिए क्षमा मांगें।

इसके बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव के प्रतीक कलश को (मूर्ति, तेल व कंबल सहित) किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दें।

इस प्रकार पूजा करने के बाद दिन भर कुछ खाए नहीं। शाम को सूर्यास्त से कुछ समय पहले अपना व्रत खोलें।

इस तरह पूजा और व्रत करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

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